नई दिल्ली: सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) ने एक वैश्विक अध्ययन में कहा है कि डीजल चालित एसयूवी, एक छोटे से पेट्रोल कार की तुलना में 25 से 65 गुना अधिक एनओएक्स के बीच उत्सर्जन कर सकती है। एनओएक्स, एक हानिकारक गैसीय प्रदूषक है।
गैर-लाभकारी संगठन ने कहा कि देश के मौजूदा प्रदूषण नियंत्रण (पीयूसी) प्रमाणीकरण प्रणाली सड़क पर डीजल वाहनों से गैसीय और कण उत्सर्जन को माप नहीं करती है।
सीएसई ने एक बयान में कहा, “दिल्ली-एनसीआर में एक डीजल एसयूवी को जोड़ना, नाइट्रोजन ऑक्साइड के मामले में 25 से 65 छोटे पेट्रोल कारों को जोड़ने के बराबर होता है, जो की एक बहुत ही हानिकारक गैस है, जो की घातक ओजोन भी बनाता है।”
यह अध्ययन इंटरनेशनल सेंटर फॉर ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी (आईसीएटी) और अमेरिका स्थित इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रान्स्पोर्टेशन (आईसीसीटी) ने किया था।
सीएसई की अनुमिता रायचौधरी ने कहा, “भारत को वाहन प्रमाणन के लिए कड़ी परीक्षा प्रक्रियाओं को अपनाना चाहिए और जब वाहन सड़क पर चलते है तो वास्तविक उत्सर्जन की प्रत्यक्ष निगरानी को लागू करना होगा।”
बढ़ते वाहनों के प्रदूषण से चिंतित, उच्चतम न्यायालय ने 10 अगस्त को वाहनों की बीमा पॉलिसी का नवीनीकरण सहित कई दिशा निर्देश जारी किए थे, जब तक कि मालिक बीमा कंपनियों को नियंत्रण (पीयूसी) के तहत प्रदूषण प्रमाण प्रदान नहीं करता है।