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भारत में कारों के प्रवेश व भारतीय कारों के जन्म पर एक नजर

by कार डेस्क
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क्या आपने कभी सोचा है भारत में “एच एम एंबेस्डर” के जन्म से पहले भारत में कैसी कारें रही होंगी? क्या भारत में अमरीका के क्लासिक कारें जैसी कार थी या उनसे कुछ अलग?

क्या आपने कभी सोचा है भारत में “एच एम एंबेस्डर” के जन्म से पहले भारत में कैसी कारें रही होंगी? क्या भारत में अमरीका के क्लासिक कारें जैसी कार थी या उनसे कुछ अलग? आज, मैं इन बातों पर विचार कर रही थी और इंटर्नेट के माध्यम से मिले जानकारी के आधार पर मैं आपको भारत में कारों के प्रवेश व जन्म से जुड़ी कुछ खास और रोचक बातों से अवगत कराने जा रही हूँ।

“क्या भारत के पास अमरीकन क्लासिक कार जैसी कारें थी?” नहीं, भारतीय लोगों के पास ऐम्बी से पहले कोई “भारतीय” कार नही थी। हालांकि, ऐम्बी भी पुर्णतया भारतीय कार नहीं है, बल्कि यह बंद सीरीज 3 मॉरिस ऑक्सफोर्ड की कांता थी।

पहली स्वदेशी कार: भारत की पहली पूर्णतया स्वदेशी कार थी टाटा इंडिका’ जिसे 1998 में लॉन्च किया गया था।

पर सवाल अब भी वही है कि एच. एम. एंबेस्डर के जन्म से पहले भारत में किस प्रकार की कारों ने प्रवेश लिया था?

भारत की पहली मोटर कार: पटियाला (पंजाब) के महाराजा ने भारत में पहली मोटर कार का आयात 1892 में किया था। यह मोटर कार “फ्रेंच डि डायन बॉटन स्टीम चालित 2 सिलेंडर वाली त्रि- कार” थी।

1893 में अमरीकी रैंसम एली ओल्ड्स ने अपना पहला निर्यात आर्डर प्राप्त किया था, यह एक 4 पहियों वाली स्टीम द्वारा संचालित ओल्ड्समोबाइल नामक मॉडल कार थी जिसे जहाज के माध्यम से भारत पहूँचाया गया था- पर दुर्भाग्यवश जहाज के डूब जाने के वजह से यह भारत पहूँच नही पाई थी। यह पहली कार थी जिसे अमरीका द्वारा भारत में निर्यात किया जा रहा था।

एक रिपोर्ट के यह जाहिर करती है कि पहली कार को कलकत्ता में 1896 में चलाया गया था।

1898 में, भारत में एच. हेविट द्वारा एक कार लाया गया था। इस कार के मॉडल की जानकारी तो मुझे नहीं प्राप्त हो सकी पर शायद यह ओल्ड्समोबाइल थी।

1901 के आसपासतीन घुमावदार डैश वाली ओल्ड्समोबाइल मॉडल को भारत में पेश किया गया और इसे टाटा ग्रुप के फाउंडर, जमशेदजी टाटा के पास बेचा गया था।

1903 मेंमुम्बई (बॉम्बे) में पहली टैक्सीकैब आई थी, तब एक अमरीकन कंपनी ने 50 कारों के माध्यम से एक सार्वजनिक टैक्सी सेवा की शुरूआत की थी।

1906 के दौरानपेस्तोंजी बी प्रेस और उनके बेटे की कंपनी (ये पहले अभिजात वर्ग के लिए घोड़ा गाड़ी तैयार किया करती थी) ने कार की चेसिस के लिए बॉडी का निर्माण करके उसे भारत में निर्यात करना शुरू किया था।

1910 तकमुम्बई में लगभग 1025 कारें आ चुकी थी।

1926 तक, फोर्ड मोटर कंपनी कनाडा ने लगभग 22,000 मॉडलों को भारत के लिए सप्लाई किया था। इसी समय उन्होंने भारत में एक एसेम्ब्ली प्लांट का भी अनावरण किया था।

1928 मेंशेवरलेट / जनरल मोटर्स ने एक सेवरी में एक एसेम्ब्ली प्लांट स्थापित किया। इस कंपनी द्वारा पहली निर्मीत कार थी 24.7 हॉर्सपावर नेशनल सीरीज ए बी टूरिंग मॉडल।

हालांकि इन दोनों एसेम्ब्ली इकाइयों ने 1954 तक दुकानों को बंद कर दिया था, इसकी वजह ट्रेड युनियनों की वामपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा उठाये गए भारी नुकसान थी।

1930 तकभारत में एसेम्बल और निर्यात हुए वाहनों की संख्या 30,000 के पार पहूँच चुकी थी, जिनमें 17,000 कारें और 15,000 क्मर्सियल वाहनें शामिल थी।

दुसरे वर्ल्ड वार के अंत तक भारत में स्वदेशी वाहन उद्योग के स्थापना की जरूरत महसूस हुई जब प्रीमियर ऑटोमोबाइल लिमिटेड (पी ए एल) और हिंदुस्तान मोटर्स (एच एम) ने मिलकर एक उद्योग की स्थापना की जहां ना कि निर्यात किए गए पूर्जों से कार को एसेम्बल किया जाए बल्कि, पूर्ण रूप से स्वदेशी कार का उत्पादन व निर्माण किया जा सके।

हिंदुस्तान मोटर्स की स्थापना 1942 में कार के महत्त्वपूर्ण पूर्जों के उत्पादन के लिए की गई थी, पर वास्तव में कंपनी ने 1949 से कार का निर्माण करना शुरू किया था। प्रीमियर ऑटोमोबाइल लिमिटेड की स्थापना 1944 में सेठ वालचंद हीराचंद द्वारा की गई थी, वह पूर्व-स्वतंत्र भारत के दूरदर्शी और एक उद्योगपति थे। 1946 के शुरूआत में हि पाल के संयंत्र में डोज डीसोटो और प्लाइमाउथ कारों की एसेम्बली का काम शुरू होने की घोषणा कर दी गई थी।

हालांकि एच. एम. की खोज श्री बी एम बिरला द्वारा 1942 में हुआ था, पर पहली कार हिंदुस्तान 10 जो कि ब्रिटिश मॉरिश 10 पर आधारित थी, का निर्माण 1949 से शुरू हुआ था।

बाद में 1950 में “बेबी हिंदुस्तान” का निर्माण हुआ था, जो मॉरिश माइनर” पर आधारित थी और हिंदुस्तान 14 जो कि मॉरिस 14 पर आधारित थी।

मॉरिस ऑक्सफोर्ड पर आधारित कार, लैन्डमास्टर का उत्पादन 1954 में शुरू हुआ था।

1957 में, मॉरिस ऑक्सफोर्ड की सीरीज 3 की एक टूल लाइन को भारत भेजा गया था और एम्बेस्डर कार का उत्पादन कार्य 1958 से शुरू हुआ था। निर्मित किए गए मॉडल में शामिल थे- मार्क 1 से 1 वी रेंज तक के नोवा, 1800 1 एस जेड और एविगो।

1985 में, हिंदुस्तान मोटर्स ने 1972 वॉक्सहॉल विक्टर की एम्बेस्डर इंजन को प्रत्यारोपित किया जिसके फलस्वरूप हमें क्न्टेस्सा का जन्म हुआ था।

1962 और 1998 के बीच कंपनी ने फिएट 1100 के एक लाइसेंस प्राप्त संस्करण की पेशकश की जिसे उसने प्रीमियर पद्मिनी का नाम दिया। यह कार 40 हॉर्सपावर तक पावर प्रदान करने वाले पेट्रोल इंजन द्वारा संचालित थी।

2001 तक निर्मित किए गए अन्य कारों में फिएट 124 के 2 संस्करण शामिल थे- फिएट युनो और पिजेट 309

1985 में, प्रीमियर ने फिएट 124 को पेश किया था। इस कार में निसान ए 12 पावरट्रेन प्रदान की गई थी।

उस जमाने में भारत में स्टैंडर्ड मोटर्स मात्र एक कंपनी थी, जो यात्री कारों (पैसेंजर कार्स) का निर्माण करती थी। 1948/49 तक यूनियन मोटर कंपनी ने लंदन के स्टैंडर्ड मोटर्स के साथ एक एग्रीमेंट किया था और उन्होंने 1950 से 2088 सीसी की वैनगार्ड कारों को एसेम्बल करना शुरू कर दिया था।

1950 के शुरूआती दौर में स्थानिय रूप से निर्मित किए गए पूर्जों को एकीकृत किया जा रहा था और बाद में कंपनी का नाम स्टैंडर्ड मोटर प्रोडक्ट्स ऑफ इंडिया (स्टैम्प्रो- एस टी ए एम पी आर ओ) हो गया।

1955 में कंपनी ने 803 सी सी की स्टैंडर्ड 8 मॉडल को पेश किया और बाद में उन्होंने मॉडल 8 के लिए 948 सी सी की बड़ी इंजन संस्करण को भी पेश किया।

दुबारा से स्टाइल किया हुआ स्टैंडर्ड 10, 1959 और 1961 के बीच विकसित किया गया था। एक जागीर संस्करण मॉडल जिसका नाम क्म्पेनियन था, वह 1963 के अंत तक बनाया गया था।

दिसंबर 1960 में, दो द्वार वाली हेराल्ड (ट्रायम्फ) का निर्माण किया गया था जिसमें 948 सी सी की इंजन लगी हुई थी। 1961 में इस मॉदल ने दो मॉडलों- मॉडल 10 और पेन्नट को रिप्लेस किया था।

1966 में स्टैंडर्ड हेराल्ड की मार्क 2 संस्करण पेश की गई थी, बाद में जाकर 1967-68 में मार्क 3 मॉडल का भी निर्माण हुआ जिसमें 4 द्वारें थी।

1970 में, मार्क 3 के क्म्पेनियन एस्टेट संस्करण का निर्माण किया गया।

लंदन के स्टैंडर्ड मोटर ने 1944 में ट्रायम्फ को प्राप्त किया। 1961 में लीलैंड मोटर्स ने स्टैंडर्ड ट्रायम्फ को प्राप्त किया और 1968 में नव निर्मित ब्रिटिश लीलैंड का हिस्सा बन गई। 1970 में स्टैंडर्ड मोटर का ब्रिटिश लीलैंड के साथ किया गया अग्रीमेंट समाप्त हो गया और साथ हि स्टैंडर्ड हेराल्ड कार का निर्माण 1971 में रूक गया।

1971 और 1977 के बीच कंपनी ने भारत में 948 सी सी की 10 एच पी चार-द्वार गैजेल वाला पहला कार बनाया था।

जिस कार का उत्पादन 1977 में रूक गया था, उसे 1985 में फिर से शुरू कर दिया गया जब फिर से कंपनी ने स्टैंडर्ड 2000 को लॉन्च किया।

जहां पी. ए. एल और एच. एम. ने पैसेंजर कार बनाने पर ध्यान दिया, महिंद्रा भाईयों, कैलाश चंद्र और जगदीश चंद्र ने 1945 में महिंद्रा &महिंद्रा की खोज की। उनके कंपनी का उद्देश्य यूटिलिटी वाहनों का निर्माण करना था।

उस समय पर चार पहियाड्राइव देश के लोगो और सेनाओं के प्रयोग के लिए सबसे अच्छी मानी गई थी। महिंद्रा भाईयों ने निर्णय लिया कि वह लोकप्रिय अमरीकन जीप जैसे चार पहिया ड्राइव वाहनों का निर्माण करेंगे। शुरूआती तौर पर कोई बदलाव ना करते हुए जैसी वाहनें आ रही थी विसा ही निर्माण किया गया।

इसी काल की एक और लोकप्रिय वाहन थी जिसका नाम था- एच एम ट्रेकर।

स्वतंत्र भारत ने ऑटोमोबाइल को उद्योग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा घोषित किया, जिसे सरकार द्वारा चलाने और नियंत्रित करने का भार सौंपा गया। शुरूआत के लिए, पूरी तरह से निर्मित इकाइयों के आयात पर गंभीर रूप से प्रतिबंध लगाया गया। 1952 मेंसरकार ने टैरिफ कमिशन द्वारा किए गए सिफारिशों के तहत पहला टैरिफ आयोग नियुक्त किया, और साथ हि ऐसे एसेम्बलरों की गतिविधियों को बंद कर दिया जो किसी निर्माण कार्यक्रम में शामिल नहीं थी।