नलिन सहित आईआईटी खड्गपुर के 3 दोस्तों ने मिलकर ऑटोनोमस वाहनों पर कुछ शोध किया है और सिलिकन वैली में एक रोबोटिक शोध समुह (रोबोटिक रिसर्च ग्रुप) का स्थापना किया है।
नलिन सहित आईआईटी खड्गपुर के 3 दोस्तों ने मिलकर ऑटोनोमस वाहनों पर कुछ शोध किया है और सिलिकन वैली में एक रोबोटिक शोध समुह (रोबोटिक रिसर्च ग्रुप) का स्थापना किया है। ये तीनों दोस्त कॉलेज समाप्त करने के बाद भी अपने जूनून को छोड़ना नहीं चाहते थे। भारत में अभी ऑटोनोमस कार बाजार स्थापित नहीं है फिर भी इन दोस्तों ने अपने जूनून को पूरा करने के लिए किसी और जगह की खोज की।
उन्होंने पिछले साल एक्सीलेटर वाई कॉम्बिनेटर से पैसे लिए, और सिलिकन वैली पहुँचकर वहां पर ऑरो रोबोटिक्स की स्थापना की। पिछले हफ्ते, उन्होंने वहां के निवेशकों से 2 मिलियन डॉलर इकट्ठा किया। नलिन गुप्ता, जीत रे चौधरी और श्रीनिवास रेड्डी, गूगल और टेस्ला जैसे ऑटोनोमस कार निर्माण में दो अग्रणी कंपनियों के बाजार पर लक्ष्य कर रहे हैं। ऑरो रोबोटिक, सांता क्लारा विश्वविद्यालय में एक छोटे से ऑटोनोमस (स्वायत्त) गोल्फ के साथ पायलट परीक्षण में चलया जा रहा है, और अगले साल तक इसे बाजार में भी पेश किए जाने की उम्मीद है।
नलिन गुप्ता ने कहा, “ यह एक सधारण समस्या है। हालांकि, कैंपस में एक नियंत्रित वातावरण होता है। वहां ट्रैफिक पालन की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए वहां वाहनों की गति कम रखनी होती है। ऐसे वाहनों की जरूरत विश्वविद्यालय के परिसरों, थीम पार्क, और निवृत्ति समुदायों के लिए है।
इन वयक्तिगत परिसरों के बाद, ऑरो रोबोटिक को उन बाजारों के लिए देखा जाएगा, जहां बड़ी बड़ी कंपनियों का ध्यान नहीं जाता है, जैसे शहरों में लास्ट और फर्स्ट मील यतायात। जब इन ऑटोनोमस वाहनों को सड़कों पर उतारा जाएगा, तब इन स्वायत्त वाहनों को मनुष्यों द्वारा पैदा किए गए अव्यवस्था से समझौता करना होगा। केवल मनुष्य ही सावर्जनिक सड़कों पर फैली हुई अव्यवस्था को समझ सकते है।
स्वायत्त वाहनों का भविष्य:
ऑटोमोबाइल कंपनियों के अंतर्गत, स्वायत्त वाहनें उनके प्रमुख परियोजनाओं में एक के रूप में है। मर्सिडीज-बेंज शोध एवम् विकास केंद्र ने पिछले कुछ वर्षोंमें काफी उन्नति किया है, अब 3.000 से ज्यादा लोग ऑटोनोमस वाहन सहित और बाकि संबंधित समस्याओं का समाधान निकालने में लगे हुए है। नियमों की कमी के वजह से भारत की सड़कों पर ऑटोनोमस वाहनों का परीक्षण रूका हुआ है।
मर्सिडीज-बेंज शोध एवम् विकास केंद्र के विचारों का परीक्षण यूरोप के सड़कों पर किया जा रहा है। बंगलौर के शोध एवम् विकास केंद्र में भी ऑटोनोमस वाहन तकनीक पर काम किया जा रहा है। अन्य ऑटोमोटिव शोध एवम् विकास केंद्र भी पार्किंग असिस्ट, रिमोट गराज पार्किंग,और अन्य तकनीक के विकास पर काम कर रहे है। टेक्सस उपकरणें भी इन कंपनियों के चीप को विकसित करने के कार्यक्रम पर काम कर रही है। ये चीप ऑटोनोमस वाहन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
हालांकि एक पूर्णतया विकसित स्वायत्त वाहन (ऑटोनोमस वेहिकल) और उच्चत्तम स्वायत्त वाहन में बहुत अंतर होता है, कुछ वर्षों बाद उपभोक्ताएं कारों को धीरे-धीरे ऑटोनोमस वाहन में परिवर्तित होता अनुभव करेंगे, जैसा कि गत काफी वर्षों में कंप्यूटरों ने एक एक करके इंसान द्वारा किए जाने वाले कार्यों को करना शुरू कर दिया है।
ऐसे देश जहां की सड़कें विकसित है वहां काफी मात्रा में ऑटोनोमस वाहनें प्रयोग में है, और कुछ हि दिनों में इन सड़कों पर उच्च ऑटोमेटेड वाहनें भी पेश की जाएगी। यहां तक कि भारत की सड़कों पर भी आंशिक स्वायत्त वाहनों को पेश किया जा सकता है, पर बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और नियमों के लिए हमें थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा।
उदाहरण के तौर पर, ड्राइवर असिस्टेंस तकनीकों को भी कार में पेश किया जा रहा है। एडेप्टिव क्रूज कंट्रोल, कार को हाईवे पर गति को धीमा करने और कार के गति के अनुसार गति का सामंजस्य करने के लिए है। इस सुविधा का उन्नत संस्करण, कार को ट्रैफिक के अनुसार खुद हि पीछे लेने, रोकने और आगे बढने में मदद करेगी। ये सब आंशिक स्वायत्त वाहनों में प्रदान की गई सुविधाओं में शामिल है।
एक उच्च स्वायत्त वाहनों में प्रदान की गई सुविधाएं कुछ इस प्रकार होंगी- विभिन्न प्रकार के कैमरा, कम और ज्यादा रेंज तक वाले रडार, विभिन्न प्रकार के सेंसर, और विभिन्न सूचनाओं के संचालन के लिए उच्च मात्रा की बुद्धिमत्ता। अधिकांश प्रेक्षकों का कहना है कि 2020 तक ऑटोनोमस वाहन विकसित बाजारों के लिए सामान्य हो जाएगी।
तकनीकी तौर पर, स्माज के लिए एक पूर्णतया विकसित स्वायत्त वाहन को अपनाना भी मुश्किल होगा। विकसित बाजारों में सरकार ने कुछ समय के लिए स्वायत्त वाहनों के लिए विचारों को पहचानना शुरू कर दिया था, पर क्या किया जाना चाहिए इस पर कोई आम सहमति नहीं मिल पाई है। इस साल के शुरूआत में, अमरीकी यातायात सेक्रेटरी ने ऑटोमेटेड वाहनों के लिए एक गाईडलाइन पब्लिश किया था।
बंगलौर स्थित कंटीनेंटल शोध एवम् विकास केंद्र के प्रमुख, रागह्व गूलूर ने कहा है, “स्वायत्त वाहनों के विकास में अधिक देरी की वजह वाहनों से जुड़े अधिनियम हैं।“
टेस्ला द्वारा किए गए दावों के बावजूद, बुनियादी चिंताओं के वजह से उद्योग के दिग्गजों को पूरा भरोसा है कि भारत में ऑटोनोमस वाहनों की पेशकश 2025 तक या उसके बाद ही हो पाएगी, हालांकि कुछ युरोपीय देशों में पूर्णतया स्वायत्त वाहनों के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा उपलब्ध है। कार निर्माताओं को नहीं लगता है कि कुछ दशकों तक स्वायत्त वाहनों के लिए भारत की सड़कें तैयार हो पाएंगी, हलांकि भारत प्रौद्योगिकी के विकास के लिए एक केंद्र बन सकता है।
भारत में उन्नत प्रौद्योगिकियों का प्रवेश कम हुआ है। मार्केट रिसर्च फर्म मार्केट एंड मार्केट द्वारा किए गए एक प्रारंभिक अध्ययन, जो अभी तक पूरा भी नहीं हुआ है, ने पाया है कि ब्रेक असिस्ट और पार्क असिस्ट जैसी सुविधाओं ने भारतीय बाजार में क्रमश: 3 से 5 फीसदी तक प्रवेश किया है। टायर प्रेसर मोनिटरिंग, जो कभी कभी भविष्य में जरूरी हो सकती है, उसका मात्र 2.7 फीसदी तक ही प्रवेश हुआ है।
भारत जैसे कीमत के प्रति संवेदनशील बाजारों में ऐसी उन्नत प्रौद्योगिकी का प्रवेश बहुत धीरे होता है। उच्च स्वायात्त वाहनो के लिए भारतीय सड़कों का बुनियादी ढांचा अभी बहुत पीछे है। पर क्या यह 21वीं सदी की प्रौद्योगिकी भारतीय चालकों और नियामकों को तेजी से बदलाव लाने के लिए उनके चाह की तुलना में दबाव डाल पाएंगे?