राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) और सरकार द्वारा 15 साल से ज्यादा पुरानी कारों के परिचालन को बंद करने की कोशिशों के बीच विंटेज कारों (पुराने जमाने की कारों) के अस्तित्व को लेकर सवाल उठने लगे हैं। विंटेज कारों के शौकीनों को यह चिंता सताने लगी है कि इस कानून के क्रियान्वयन के बाद उनके शौक और विंटेज तथा क्लासिक कार रैलियों का क्या होगा? ऐसे में ऐसी कारों के मालिकों और इससे जुड़े संगठनों ने इन कारों को विरासत का दर्जा दिलवाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। ऐसा संभव होने पर इन कारों पर यह बैन प्रभावी नहीं होगा। कई विंटेज कारें 100 साल से भी पुरानी हैं।
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स्टेट्समैन विंटेज एंड क्लासिक कार रैली
राजधानी के मेजर ध्यानचंद राष्ट्र्रीय स्टेडियम में रविवार को 51वीं वार्षिक स्टेट्समैन विंटेज एंड क्लासिक कार रैली का आयोजन हुआ। यह देश में आयोजित होने वाली सबसे पुरानी विंटेज कार रैलियों में एक है। इस रैली की शुरुआत 1964 में हुई थी। इस रैली की आयोजक कंपनी स्टेट्समैन लिमिटेड ने सरकार से इन कारों (विंटेज) को विरासत कार (हेरिटेज कार) का दर्जा देने की मांग की है। इससे इन्हें प्राधिकरण के 15 साल से ज्यादा पुरानी कारों का परिचालन बंद करने के आदेश से राहत मिल जाएगी। रैली में शामिल लोगों का कहना है कि ये कारें भारत की विरासत हैं और इनका संरक्षण जरूरी है।
विरासत को नुकसान
50 साल पहले इन कारों के संरक्षण के मकसद से स्टेट्समैन ने इस रैली की शुरुआत की थी। अन्यथा यह भारत से निर्यात होकर बाहर चली जातीं और इससे भारत की विरासत का नुकसान होता। इन कारों के मालिकों का कहना है कि वे प्राधिकरण को यह समझाने का प्रयास भी कर रहे हैं कि इन्हें कुछ रियायत दी जाए, ताकि इन्हें चालू हालात में रखा जा सके। ऐसा नहीं होने से देश की यह विरासत नष्ट हो जाएगी। राजस्थान समेत देश की तमाम जगहों पर इस तरह की कारें हैं, जिन्हें लोग बड़ी संभालकर रखते हैं और वक्त आने पर ही निकालते हैं।
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रख-रखाव कठिन व कारीगरों की किल्लत
कल यानी रविवार की रैली में सबसे दूर कानपुर से एक कार रैली में शामिल हुई। यह 1920 की रॉल्स रॉयस है। यह तारिक इब्राहिम की कार है और उनके परिवार के पास यह कार पांच पीढिय़ों से है। रैली में सबसे पुरानी कार 1914 की जॉन मॉरिस शामिल हुई है, जो हैदराबाद के निजाम की थी। इसका रख-रखाव अब रेल संग्रहालय कर रहा है। इन कारों का रख-रखाव भी काफी कठिन है। इनके कारीगर और कल-पुर्जे बहुत मुश्किल से मिलते हैं। कल-पुर्जों को तो विशेष रूप से संबंधित कार कंपनियों से आयात किया जाता है। सबसे अधिक दिक्कत कारीगरों की कमी है।
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